28/9/20

Poem in Hindi || kabita || Dard bhare nagme



1. जाके सुना दे कोई ये ऐलान पत्थरों से मिनारो से
आज निकला है शैलाब मखमली किनारों से

वर्षो से बंद थी गुमनाम थी चिड़िया आसमानों की
उसने परो को लड़ाया है लोहे की दीवारों से

तेरे जोर जुल्म सितम सब फिके पड़ जायेंगे
अब जाके तु टकराया है हौसलों के गुब्बारों से

बुरे हालात ने रोका है पर मै चुका नहीं हूं
ये बात कोई बता दे मेरे निगारो  से

आज अंधेरा है कल फिर सूरज निकलेगा
दिल ना हारे कह दे इन नज़ारों से

उसने नफरत की जमीं पे कुछ उगाया है समन्दर
कोई दरिया नहीं बनता मजधारो से।


1. जाके सुना दे कोई ये ऐलान पत्थरों से मिनारो से
आज निकला है शैलाब मखमली किनारों से

वर्षो से बंद थी गुमनाम थी चिड़िया आसमानों की
उसने परो को लड़ाया है लोहे की दीवारों से

तेरे जोर जुल्म सितम सब फिके पड़ जायेंगे
अब जाके तु टकराया है हौसलों के गुब्बारों से

बुरे हालात ने रोका है पर मै चुका नहीं हूं
ये बात कोई बता दे मेरे निगारो  से

आज अंधेरा है कल फिर सूरज निकलेगा
दिल ना हारे कह दे इन नज़ारों से

उसने नफरत की जमीं पे कुछ उगाया है समन्दर
कोई दरिया नहीं बनता मजधारो से।


2.सुबह के बाद बस मैंने रात तमाम देखी है
कई चाहतों कि नीलामी सरेआम देखीं है

आज अपने गाँव आया आज यार मिले
कई मुद्दतों बाद मैंने आज शाम देखीं है  



3.तेरे प्यार की हीफाजत,
कुछ इस तरह की हमने।

जब भी कीसी ने प्यार से देखा,
तो नजरें झुका दी हमने।।

4.तेरी मेरी यारी, 
सब पर थी भारी||
तू साथ मेरे, 
 जब होती थी ||
एक अलग ही, 
साहस में जीती थी ||
जैसे जग से मैं, 
लड़ जाऊँगी ||
दुनिया बाल न बांका, 
मेरा कर पायेगी ||
होते थे जब साथ साथ, 
मस्ती बहुत करती थी ||
छीन सारी चॉकलेट, 
मैं तेरी खाती थी||
आती है याद अब भी, 
वो वक़्त क्यों नहीं आता अब ||

5.फूल फेंका पर मुझे पत्थर लगा,
आज पहली बार मुझे डर लगा।।

बरसों से रहते आया आज मुझे,
गांव से माँ को लाया तो घर लगा।।

देखा छत पे कबूतर  उड़ाते हुए,
वो हसीन,कातिल, दिलवर लगा।।

पीसा गया हूँ मैं बहुत तब जाकर,
तेरी  आँखो में यूँ ये काजर लगा।।

सर-ए-बाजार बेपरदा हीरोइने ये,
मजबूर तवायफ से हमें बद्दतर लगा।।

चंद पैसे कमाने की खातिर मेरा,
दांव पे अब तो गांव, घर,मग़र,लगा।।

गजलें कहना आसान नही केवल,
इनमें काफिया,रदीफ़,बहर, लगा।।

परिंदो को उड़ जाने तो दे इंसान,
काट रखे तूने फिर से वो पर लगा।।

कारण उनको तो कुछ पता ही नही,
दंगो में  जिनके  हाथ पत्थर  लगा।।

दूरियां नजदीकियों में तब्दील हों रब,
न फैसले में देरी नही उमर लगा ।।

 मौजूद हम रौशनी के लिए,
दिल के अंधेरे में उसे न खबर  लगा।।




6. जब नेह नयन के दर्पण में।
जब पावन पुण्य समर्पण में।।
जब मात-पिता का वंदन हो।
जब गुरुवर का अभिनन्दन हो।।
जब राम बसे हों कण कण में।
जब श्याम बसे हों तन-मन में।।
जब सूरज चाँद सितारों में।
जब धरा गगन आभारों में।।
जब पर्वत सागर तरुवर में।
जब पावन सकल चराचर में।
जब यार सखा में दुश्मन में।
जब प्रिय प्रियवर में, परिजन में।।
हम नेह जताया करते हैं।
हम प्रीत जगाया करते हैं।।
तब कृपा प्रभू की मिलती है।
तब कली नेह की खिलती है।।
तब प्रियवर मैं आ जाता हूँ।
तब नमन भोर का गाता हूँ।।


7."तुझसे  मिलने  की  प्यास बाकी है
अब   भी   मेरी   तलाश   बाकी है

बहुत कुछ पा लिया है किंतु सनम
कोई   इक  चीज  खास  बाकी  है

मेरे     दीवानगी  भरे   दिल   का
तेरे    दिल  मे   प्रवास   बाकी  है

तेरी    दूरी   ने   जो   बनाई   थी
मुझमे अब भी वो त्रास  बाकी  है

 मेरी   नाकामयाबी    कहती   है
थोड़ा  अब भी  प्रयास  बाकी  है

खोज  यह  खत्म एक दिन होगी
थक  गया  हूँ  पर  आस  बाकी है

ये  अभी  मेरी  कल्पना  है   बस
उसका  भी  तो  कयास बाकी है

बाथम  पर्दे  मे   रह  नही  सकता
सीने  में  ये   विश्वास  बाकी   है"


8.  इश्क़ की दुनिया है साहिब
        यहाँ कुछ भी हो सकता है
 दिल मिल भी सकता है
        और खो भी सकता है!!

जिसे तुम चाहते हो
        किसी और का भी हो सकता है
 तुम समझो इबादत
        वो गुनाह भी हो सकता है!!
अपना समझो जिसे~~
        वो सपना भी हो सकता है....

9.   अपनी तबियत के हालात हमसे बताये ना गए ।
वो आये ही इतनी जल्दी में कि जख्म दिखाए ना गए ।।

और दस्तक भी दी उसने तो उस चौखट पर जाकर ।।
जहाँ बुझे हुए दिए फिर से जलाये ना गए ।।

10. प्रकृति......

रूपक भी क्यों ना करे तुमसे प्यार
तुम ही तो हो इस जग में सबसे सुंदर।

तुमसे तो ही है सारा जग इतना प्यारा
तुम्हारे लिए तो है इस जग में सभी प्यारा।

एक रंग नहीं सभी रंग तो है तुझमें ही समाया
तुम्हारे खुशबू से ही है ये सारा जग महकाया। 

तुम्हारी बाहों में आकर हर कोई हर गम भूल जाता है
तुम्हारी सुंदरता तो सबको अपने पास खींच लाता है।

तुम्हारे साथ जिंदगी जीने में अलग ही अनुभूति होता है
तुम्हारी दुनिया माया की दुनिया से अलग ही रहता है।

तुमसे ही तो इस जग में हर कोई जुड़ा हुए है
रूपक तुम्हारी सुंदरता पहचान कर धन्य हुआ है।

10. अब ये राह हमनें जरा,हटके चुनी है।
तेरी तरफ जाती जो डटके चुनी है।।

तुमको देखा और इन आँखों ने तुम्हें ही।
देर नही की केवल एक झटके चुनी है।।

पीने की नई-नई लत अब देखो हमारी।
होठों से तेरे ही हमने तो सटके चुनी है।।

ख्वाहिश तुझे पाने की जो अब हमारी।
पतंग की तरह यूँ हमने कटके चुनी है।।

सिलसिले तेरी चाहत के सुनो हमसे केवल।
किस्से तमाम इश्क के ही रटके चुनी है।।





11.बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में 
कि तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में। 

बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में 
वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में। 

इसी में इश्क़ की क़िस्मत बदल भी सकती थी 
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में। 

ये कह के टूट पड़ा शाख़-ए-गुल से आख़िरी फूल 
अब और देर है कितनी बहार आने में।




12.स्कूटी पर बैठी एक लड़की सयानी
लहराती सी जुल्फें बिलखाते खाते हॉट
लग रही थी परियों की रानी 
कर रही थी कायल उसकी जवानी। 

देख उसे दिल मेरा मचलने लगा
 प्यार में उसके पिघलने लगा। 
मन को मैंने खूब समझाया 
मत कर गलती बेवकूफ, 
पर वह था कहां सुनने वाला 
उसने तो जाकर बोली डाला। 







13.💗 क्या है प्यार 💗

"खुद कष्ट झेलकर भी किसी के चेहरे पर,
मुस्कान लाने का नाम है प्यार ।
दर्द सह कर भी चाहने वाले की,
परवाह करने का नाम है प्यार ।।

लबों से जो बात निकल न पाय,
उस एहसास को भी समझ जाना है प्यार।
अधिकार हो न सही,
फिर भी विशेषाधिकार समझना है प्यार।।

दूर रहकर भी,
दिल का आलम जान लेना है प्यार।
बिना जिक्र के ही ,
महबूब की फिक्र करना है प्यार।।

मिलने की उम्मीद तक न हो,
फिर भी दिल को बेक़रार किये रहना है प्यार।
चंद पलों की मुलाकात के सहारे ही,
चाहत के लम्हे सजाना है प्यार।।"






14.हमको किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही;
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फिर सही!

दिल के लुटने का सबब, पूछो न सबके सामने;
नाम आयेगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही!

नफ़रतों के तीर खा कर, दोस्तों के शहर में;
हमने किस किस को पुकारा, ये कहानी फिर सही!

क्या बताएं प्यार की बाज़ी, वफ़ा की राह में;
कौन जीता कौन हारा, ये कहानी फिर सही!






15.राहें अलग पर मंजिल एक थी।
आकांक्षा अलग पर स्थिति एक थी।
कहीं सपनेे तो कहीं दरिये थे।
आगे बढ़ने के कम जरिये थे।

जिन्दगी की होड़ में तुझे पाने की तलब थी।
कैसे बताउँ मेरी इस तलब में एक तड़प थी।

इश्क तो आँखों में थी,
कुछ मुझमें भी, कुछ तुझमें भी।
एक तड़प बाहों में थी,
कुछ तुझमें भी, कुछ मुझमें भी।

शाम के बदलते रूप जैसी,
तुझे मिलने की सुलग थी।
पर समय का फेर देख,
तडप दोनों की अलग थी।







16.हम यहाँ तेरे दीदार को तड़पे,
तू वहाँ किसी के प्यार में तड़पे।
जाने अनजानेे समय फिर फेर लेने लगा,
कुछ तू तो कुछ मैं अब बदलने लगा।

तडप वो हवा में आ फिर आकर घुल चुकी थी,
मगर अब तुझे पाने की लालसा मन से धुल चुकी थी।
अब मैं तुझे नहीं, समय को पाना चाहता था,
समय को पीछे छोड़ उससे आगे जाना चाहता था।

आज परिणाम सबके सामने है,
मेरे हाथों में एक मखमली हाथ है।
जिसे बड़े-बड़े न पा सके,
मैं उसके और वो समय मेरे साथ है।

अब सोचता हूँ कि कि क्यों हुआ इतना कुछ ??
ये भाग्य था मेरा या परिणाम दे रहा मेरा कर्म??

राह में टकराये एक बुजुर्ग दे गए जवाब मेरा-
सोचता क्या है पुत्र गर्व कर तू खुदपर,
ये तेरा भाग्य नहीं, है सब तेरा कर्म।
कर्मशील हो तुम जो ले गए
वो अनुभव जो हम न ले सके ताउम्र।
खुश रह, बना जिंदगी तो तू अपना बसेरा,
शक्तिशाली है तू, अब वक्त हाथ थामे है तेरा।


17.मोहब्बत में दिल नहीं,जान लगती है।
आजकल तो मोहब्बत भी नीलाम लगती है।
एक प्रहर तो बीत जाता है 
आंखो से दिल का दर्द पोंछने में! 
दूसरे प्रहर में तो जिन्दगी की बोली 
सरेआम लगती है ।।







18.सूनी कुछ रोज़ उसकी गली होगी,
मेरे जाने पे थोड़ी खलबली होगी ;

दिखी तो नहीं आँख थी जब तलक,
बात शायद बाद में पता चली होगी;

दिल तो कहता है दुःख हुआ होगा,
अफवाह है कि पूरियां तली होगी ;

उसके गाँव में भी दिखा होगा धुआं,
देर तक दो मन लकड़ी जली होगी;

वो हार ही गयी दिल का मुकदमा,
कमी 'सिंह' की बहुत खली होगी।






19.कोई कुछ कहना चाहता है, तो कोई चुप हो के सुनना चाहता है, पर हर कोई अपनी जिंदगी जीना चाहता है।। 

कोई दूसरे के लिए त्याग करना चाहता है, तो कोई दूसरे के लिए किसी को अपनाना चाहता है।
कोई किसी के दुख सुख में हसना और रोना चाहता है तो कोई अपने मे ही खुश रहना चाहता है। पर हर कोई अपनी जिंदगी जीना चाहता है।। 

कोई किसी को प्यार करना चाहता है तो कोई किसी को हार्ट करना चाहता है। 
कोई सिर्फ अपने प्यार को पाने तथा प्यार के साथ जिंदगी बिताना चाहता है तो कोई प्यार का झूठा नाटक कर के उसके शरीर तथा प्यार को बदनाम करना चाहता है। 
पर हर कोई अपनी जिंदगी जीना चाहता है।।






20.मैं अपनी ज़िन्दगी से बहुत झगड़ के आया हूँ 
मुकद्दर से भी अपने ज़बर लड़ के आया हूँ...

ईमान की राह पर हैं मंज़िल-ओ-मुकाम दुश्वार
मैं ज़र्जर पथरीली सीढ़ियों पे चढ़ के आया हूँ..

सस्ते में हुनर बेचना जब गवारा नहीं किया
तब हिमायतियों के चहरे भी पढ़ के आया हु...!!

इसी बहाने मुझे कुछ काम मिल जाता है,
मेरी आवाज़ से जब उन्हें आराम मिल जाता है!
दिल की बातें दबा के रखती हैं वो,
और उनकी साँसे सुनकर 
मुझे ख़बर तमाम मिल जाता है!!

मेरे अक़्सो से मिलकर हर अक्स भूल जाती हैं वो,
जैसे सुबह से अरसो बाद एक शाम मिल जाता है!
जुबाँ फिसलती है तो जैसे वक़्त भी थम जाए,
इस रिश्ते को जैसे शमशान मिल जाता है!!

होंठों से बस रूबरू होने का मन करता है तब,
सुना है सब कुछ ठीक हो जाए जब 
लाल जाम में एक और जाम मिल जाता है !!



1 टिप्पणी: